प्रसंगवश – विशेष आलेख: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार – चेतावनी साथ सबक भी
● डॉ. घनश्याम बटवाल, मंदसौर
सत्तर के दशक में बना भारत के समीप बांग्लादेश वर्तमान में भारी उथल – पुथल से गुजर रहा है और तख्तापलट के बाद तो विभत्स रूप में सामने आ रहा है ।
वह भी तब जब बांग्लादेश की कमान नोबेल पुरस्कार प्राप्त मोहम्मद यूनुस के हाथों में है । तो , क्या यह अपनी सत्ता बचाने का षड्यंत्र हो सकता है ?![]()
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों हिंदू बौद्ध सिख समाज पर बेवजह हमले, मारपीट – हत्या, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, संपत्तियों की भारी नुकसानी, बच्चों महिलाओं बुजुर्गों पुरुषों के साथ जानलेवा हमले आदि किये जारहे हैं, ये घटनाएं सारे बांग्लादेश में सामने आई हैं । अत्यंत चिन्ताजनक है, ये भारत के 142 करोड़ देशवासियों के लिये चेतावनी है और सबक भी ।
बांग्लादेश स्थापना के बंगबंधु शेख़ मुजीबुर्रहमान की छबि को नेस्तनाबुद करते हुए बांग्लादेशी बहुसंख्यक लोग वहां सदियों से रहने वाली हिंदू समाज की वर्तमान पीढ़ी को भयाक्रांत कर हर तरह से बर्बाद करने पर तुले हैं ।
प्रश्न तो कई उठ रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ क्या कर रहा है, केवल बयान देने भर से अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध सिख समाज की सुरक्षा नहीं हो सकेगी, विश्व की महाशक्तियों अमेरिका, रूस, चीन, यूरोप आदि भी प्रभावी पहल नहीं कर पाए हैं जबकि प्रतिदिन घटनाओं का क्रम जारी है । नेशनल इंटरनेशनल मीडिया के माध्यम से रोजाना बुरी खबरें सामने आरही हैं ।
सबसे अधिक आश्चर्य तो यह देखने में आरहा है कि हमारे देश के अल्पसंख्यक समुदायों में बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के लिये कोई पॉजिटिव प्रतिक्रिया नहीं है ?
यह समझने की आवश्यकता है, मानव अधिकार के कार्यकर्ता, शान्ति और पीड़ितों की बात करने वाले नेताओं, विभिन्न राजनीतिक दलों, अन्य समाजों की प्रतिक्रिया बेहद ठंडी और प्रतीकात्मक ही देखने में आई है । यह परस्पर बढ़ते अविश्वास को रेखांकित करती है ।
स्मरण आता है जब देश के विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यक पर कोई विपदा आती है तब सारा विपक्ष , विभिन्न समाजों और स्वयं सेवी संगठन आग उगलते हुए सड़कों पर उतर आते हैं पर बांग्लादेश में दो माह से अधिक बीत गये और हर दिन वहां के अल्पसंख्यक हिंदू बौद्ध सिख समाज को यातनाओं से गुजरना पड़ रहा है, कोई प्रतिकार नहीं, कोई आंदोलन नहीं ?
अब भारत के विभिन्न प्रान्तों, राजधानियों, महानगरों, शहरों, जिला मुख्यालयों पर प्रतिकार, आक्रोश, विरोध और संघर्ष के स्वर और सुर तेज़ होरहे हैं, प्रदर्शन – ज्ञापन और धरने जैसे दृश्य स्थान स्थान पर होरहे हैं, यह संकेत है कि हमारे देश के समग्र हिंदू बौद्ध सिख समाज में बांग्लादेश की घटनाओं के प्रति तीव्र आक्रोश व्याप्त है ।
केंद्र सरकार, बंगाल सरकार को प्राथमिकता से अंतरराष्ट्रीय स्तर राजनीतिक, रणनीतिक, कूटनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक रूप से अतिरिक्त प्रयास कर हमारे समाज के संरक्षण और समर्थन के लिये त्वरित कदम उठाने होंगे ।
भारत की कृपा से पाकिस्तान से निकला बांग्लादेश भारतीयों पर ही जुल्म कर रहा है. वहां सत्ता पलट, जैसे हिंदुओं की कायापलट के मकसद से किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण के विचारों को पूरी दुनिया में फैलाने वाले इस्कॉन को प्रतिबंधित करने की मांग हो रही है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्याय के लिये वकील तक नहीं मिल रहे ? यह क्या है ?
हिंदुओं के घर जलाए जा रहे हैं। दुकानें लूटी जा रही हैं. अस्मिता ख़तरे में डाली जा रही है। वैसे तो बांग्लादेश भारत का मित्र देश माना जाता रहा है, शत्रुता का वर्तमान परिवेश असहनीय पीड़ा पहुंचा रहा है। षड्यंत्र के संकेत कर रहा है ।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद से शुरू हुआ विवाद अब तो संभल और अजमेर शरीफ तक पहुंच गया है। काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के विवाद तो अदालतों में कई स्टेज पर आगे पहुंच गए हैं। संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के अदालत के आदेश की कार्यवाही पर भड़का दंगा मनुष्यता की कई जानें ले चुका है। मौतों पर ना सियासी संवेदनशीलता और ना ही सामाजिक शर्म दिखाई पड़ रहा है। इसके विपरीत लाशों की राजनीति कर भविष्य के लिए बहुमत का जुगाड़ बिठाया जा रहा है।
जगत में सब कुछ अनिश्चित है। निश्चित है, तो केवल मृत्यु। सारी संवेदना और चिंतन इससे पार निकलने का होना चाहिए। लेकिन सारा फोकस धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा की भौतिक उपलब्धियों पर सिमट गया है। जिस ढंग से धार्मिक स्थलों पर विवाद बढ़ रहे हैं, वह चिंतित कर रहे हैं। देश की हारमनी पर आघात कर रहे हैं ।
एक दो नहीं अनेकों स्थान पर मस्जिदों में मंदिर के चिन्ह देखें और महसूस किए जा रहे हैं। इतिहास में संस्कृति के साथ छेड़छाड़ के वर्तमान स्मारक विवाद बढ़ा रहे हैं। संस्कृति और सभ्यता से जुड़े विवाद या तो आपसी सहमति से सुलझाए जा सकते हैं, या कानून के दायरे में उनका निपटारा हो सकता है।
यू पी के संभल में अदालत के आदेश पर ही जामा मस्जिद में सर्वे का काम किया जा रहा था। इसी दौरान दंगा भड़काया गया। अब तो धीरे-धीरे वीडियो फुटेज के माध्यम से बहुत सारी चीज साफ-साफ दिखाई पड़ने लगी है। साजिश के ऑडियो वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। यहां तक कि छापों में हथियार भी जब्त हो रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल कि किसी भी विवाद पर आधारित कोर्ट के ऑर्डर का सम्मान किया जाएगा या भीड़ का कानून चलाने की कोशिश की जाएगी। अंततः कानून ही अंतिम फैसला करेगा। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ही भव्य राम मंदिर का निर्माण संभव हो सका है।
ऐसी मान्यता है, कि विवादास्पद स्थानों या स्ट्रक्चर पर धार्मिक पूजा-पाठ, दुआ नहीं हो सकती। जिन स्थानों पर यह विवाद बना हुआ है, उनकी वर्तमान स्थिति किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल को तोड़कर निर्मित की गई है। ऐसी मान्यता पर न्यायिक कार्यवाही कोई फैसला करती है, तो उसका सम्मान हर देशवासी का कर्तव्य है।
अजमेर शरीफ दरगाह पर मंदिर होने का विवाद भी अदालत में पहुंच गया है। सर्वे की मांग करने वाली याचिका पर न्यायालय में संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए गए हैं। तथ्य और प्रमाणों पर न्यायिक प्रक्रिया से ना भागने की जरूरत है, ना भड़कने की जरूरत है और ना ही भ्रमित होने की आवश्यकता है।
बंटने और कटने के बाद ही भारत खड़ा हुआ है। बहुत लंबे समय तक अल्पसंख्यकवाद सिस्टम पर हावी रहा। इसके कारण इतिहास ऐसा बनाया गया कि बहुसंख्यकों को लेकर ऐतिहासिक गलतियां की गईं। धार्मिक कानून को संवैधानिक मान्यता देने का शूल भी बहुसंख्यकों को चुभ रहा है। यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग देश में एक समान कानून की स्थापना का एक प्रयास है।
तत्कालीन समय सिस्टम की ऐतिहासिक भूलों के कारण ऐसा माहौल बना कि बहुसंख्यकों के धर्म की बात करने वालों को “हेट माँगर्स” कहा जाने लगा और अल्पसंख्यकवाद के पैरोंकारों को इंटेलेक्चुअल माना जाने लगा। कोई भी प्रगतिशील धर्म बदलते वक्त के साथ अपने को परिमार्जित करता है, जो धर्म इस दिशा में काम नहीं करता, वहां स्वाभाविक रूप से कट्टरता बढ़ती है और यही कट्टरता विवाद का कारण बनती है। धार्मिक विवाद प्रगति में बाधा बनते हैं । सामाजिक ताना बाना बाधित कर अविश्वास बढ़ाता है ।
धार्मिक विवादों का राजनीति से भी गहरा नाता होता है। ऐसे विवादों को हर राजनीतिक दल बहुमत के जुगाड़ के लिए उपयोग करता है। एक तरफ कट्टरता और दूसरी तरफ सहिष्णुता एक सीमा के बाद टकराहट तो पैदा ही करती है।
हिंदू धर्म के देवी-देवता और प्रतीकों पर तो तरह-तरह की विकृति पूर्ण टिप्पणियां सामने आती हैं। फिर भी इस धर्म की सहिष्णुता विचारविमर्श से मामलों को सुलझाती है। लेकिन दूसरी तरफ धार्मिक टिप्पणी पर तलवारों से गला काटने की घटनाएं भी दिखाई पड़ती हैं। बांग्लादेश जैसी घटनाओं से भारत में भी घबराहट बढ़ती है आक्रोश उबलता है ।
विभिन्न धर्मों की जनसंख्या परिस्थितियों को बदलती है। शायद भारत में हिंदुओं और मुसलमानों की जनसंख्या में संतुलन को इसीलिए बहुत गंभीरता से लिया जाता है। मुस्लिम बहुल्य देशों में हिंदुओं के साथ आमतौर पर ऐसा ही व्यवहार हुआ है, जैसा अभी बांग्लादेश में हो रहा है। दूसरे देशों की ऐसी घटनाएं समुदायों के बीच संतुलन को बिगाड़ती हैं। सुरक्षा की भावनाओं को खंडित करती हैं और सुरक्षा के लिए सियासी एकजुटता के साथ ही एक हैं तो सेफ हैं, की सोच को प्रोत्साहित करती हैं।
अस्तित्व का पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि आकाश और वायु ना हिंदू है ना मुस्लिम है ओर न सिख या बौद्ध इन पांच तत्वों में जीवन हर शरीर भोगता है। खुद के मालिक बनने की कोशिश धर्म है और दूसरों पर मालकियत जमाने की कोशिश सियासत है। सियासत ही धार्मिक विवादों की जड़ लगती है।
धर्म के नाम पर मनुष्यता की जाती जान को धर्म के लिए कुर्बान होना कैसे माना जा सकता है। सबसे बड़ा मंदिर-मस्जिद हम खुद हैं। ऐसी सोच ही धार्मिक विवाद ख़त्म कर सकते हैं। अन्यथा हम समाप्त हो जाएंगे और विवाद चलते रहेंगे।
इसका एक पक्ष यह भी माना जारहा है कि भारत की बढ़ती आर्थिक, सैन्य और जनसांख्यिकी ताक़त को अस्थिर किया जाय ? सामरिक दृष्टिकोण से चीन की भूमिका तब भी संदिग्ध रही तो अब भी भरोसे लायक नहीं, यह तथ्य है कि नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मॉरीशस, बांग्लादेश आदि भारत के समीपवर्ती सभी देशों में उसका दखल बढ़ रहा है और हावी होने को आतुर है ।
आशंका है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर अत्याचार भी अंतरराष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा हो ?
हमें ही नहीं देशवासियों, राज्यों और केंद्र सरकार को अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए सावधान भी रहना है साथ ही यथोचित सख्ती से समाधान भी करना होगा ।