राज्यसंपादकीय

♦️विशेष आलेख – स्मृति शेष: पत्रकारिता एवं साहित्य कीर्ति पुरूष — स्व. श्री रामेश्वर गुरु

 

● डॉ. घनश्याम बटवाल, मंदसौर

आज़ादी के संग्राम में साहित्य – पत्रकारिता और शिक्षा क्षेत्र का अतुलनीय योगदान रहा। मध्यप्रदेश के कई स्वनामधन्य साहित्यकारों , पत्रकारों और शिक्षकों ने जनजागरण करते हुए अपनी आहुति दी और स्वाधीनता की मशाल जलाए रखी।
इनमें एक नाम इतिहास में आदर और श्रद्धा से लिया जाता है।

ऐसे कीर्ति पुरूष मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार – संपादक स्व. श्री रामेश्वर गुरु हैं।

वे ऐसे व्यक्तित्व रहे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए नैपथ्य में रहकर महत्वपूर्ण योगदान किया। आपने क़लम के माध्यम से समाचार हो या विचार , कविता हो या साहित्य सृजन, शिक्षा हो या शिक्षण सभी क्षेत्रों में महती भूमिका निभाई। तत्कालीन समय प्रिंट मीडिया ही सर्वाधिक प्रचलित था, जनमानस में प्रसार – प्रचार और विचार सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम भी
श्री गुरु ने इस माध्यम का देश और जनहित में बेहतर उपयोग किया और सम्मान अर्जित किया।

श्री रामेश्वर गुरु का जन्म आज़ादी के पूर्व 1913 में हुआ और महाप्रयाण 1987 में परंतु सात दशकों के उनके जीवन काल में सशक्त , समृद्ध और सुयोग्य पीढ़ी तैयार की। अपने साहित्य सृजन और पत्रकारिता संग्रह एवं संकलित साहित्य को 1984 – 85 में आपने ज्ञानतीर्थ माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल को विरासत के रूप में समर्पित कर दिया।

सप्रे संग्रहालय संस्थापक निदेशक पद्मश्री श्री विजयदत्त श्रीधर बताते हैं कि सबसे अधिक और सबसे दुर्लभ संदर्भ सामग्री वरिष्ठ पत्रकार स्व. श्री रामेश्वर गुरु से ही मिली। उनके द्वारा प्रदत्त बौद्धिक धरोहर नई पीढ़ी के शोध कार्य के साथ विषय ज्ञान को परिमार्जित कर रही है।

प्रख्यात पत्रकार , संपादक पंडित भवानी प्रसाद तिवारी के साथ श्री रामेश्वर गुरु ने “प्रहरी” का संपादन किया। ख्याति प्राप्त संपादक, साहित्यकार श्री हरिशंकर परसाई के साथ “वसुधा” प्रकाशन, संपादन में सहयोगी रहे। साथ ही अंग्रेजी में प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्रों के संवाददाता रहे। बालमन के मनोविज्ञान की विशेष रुचि होने से आपने बालपत्रिका “खिलौना” और “चमचम” का संपादन किया।
श्री रामेश्वर गुरु ने दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र – पत्रिकाओं में निरंतर लेखन भी किया। तत्कालीन समय के सर्वाधिक प्रसारित दैनिक अमृत बाज़ार पत्रिका के जबलपुर प्रतिनिधि भी रहे।

श्री गुरु ने स्वयं अपने एक लेख में उल्लेख किया है कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्री बनारसी दास चतुर्वेदी का 1932 में मिला सानिध्य जीवन में प्रेरक रहा। महाकौशल के अग्रणी पत्रकार श्री हुक्मचंद नारद, कर्मवीर श्री माखनलाल चतुर्वेदी के साथ कार्य किया बहुत सीखने को मिला और लगभग चार दशकों से अधिक कालखंड तक सक्रिय पत्रकारिता की।

ऐसे ही अन्य आलेख “मेरा रचना संसार” से पता चलता है कि श्री रामेश्वर गुरु पर अपने पिता साहित्यकार पंडित कामता प्रसाद गुरु का विशेष प्रभाव रहा चूंकि तत्कालीन समय के प्रतिष्ठित कवि, साहित्यिक विधा से जुड़े श्री श्यामसुंदर दास, श्री रामचन्द्र शुक्ल, राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त, श्री रामनरेश त्रिपाठी, श्री लोचन प्रसाद पांडेय, श्री माखनलाल चतुर्वेदी जैसों की उपस्थिति में उनके निवास पर ही साहित्यकारों की सरस गोष्ठियां, रचना पाठ और संवाद हुआ करता था, इसका प्रभाव और रूचि पत्रकारिता और साहित्य के प्रति उनकी बढ़ी।

शीर्षस्थ व्यंग्यकार, संपादक श्री हरिशंकर परसाई ने एक आलेख में प्रखर पत्रकार श्री रामेश्वर गुरु का उल्लेख करते हुए बताया कि श्री गुरु जीवन पर्यन्त पत्रकार रहे। ज्ञान कोष के भंडार के साथ लेखन करते साथ ही सुरुचिपूर्ण प्रभावी ढंग से निर्भीकता के साथ गरीबों, शोषित पीड़ित और वंचित वर्ग की समस्याओं को मुखरता से शासन – प्रशासन और समाज के सामने रखते। अंग्रेजी, हिंदी के साथ लोकभाषा बुन्देली में भी क़लम चलती रही।
श्री परसाई लिखते हैं कि श्री गुरु ने स्वाधीनता की पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा कुमारी चौहान पर पुस्तक “स्नेह – सेवा और संघर्ष” लेखन किया। जबलपुर – महाकौशल क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम पर केंद्रित संकलन प्रकाशित किया।
श्री गुरु बौद्धिक थे तो भावुक भी, आपने रचनात्मक लेखन के साथ ज्ञानात्मक लेखन भी खूब किया।
वे खुद इनसाइक्लोपीडिया (ज्ञान कोष) माने जाते थे। विज्ञान, ज्ञान, समाज, साहित्य, संस्कृति और राजनीति सभी विषयों पर सालों तक अधिकार पूर्वक लेखनी चलती रही।

मंदसौर से भी संदर्भ मिलता है, हिंदी साहित्य सम्मेलन का प्रांतीय अधिवेशन मंदसौर में 17 – 18 अक्टूबर 1987 में प्रांत अध्यक्ष एवं दैनिक देशबंधु संपादक श्री मायाराम सुरजन की सदारत में हुआ। श्री सुरजन सपत्निक मंदसौर आये थे। इस अधिवेशन में श्री रामेश्वर गुरु का अभिनदंन ग्रन्थ विमोचन, सार्वजनिक सम्मान कार्यक्रम होना तय था। इस बारे में सम्मेलन की विवरणिका में उल्लेख भी होगया था, किंतु श्री गुरु स्वास्थ्य कारणों से मंदसौर नहीं पहुंच सके। इस अधिवेशन में श्री बालकवि बैरागी, पंडित मदनलाल जोशी, पंडित मदनकुमार चौबे, श्री महेश प्रसाद मिश्रा, श्री नरेंद्र सिंह सिपानी, श्री शांतिलाल जैन, श्री सुरेंद्र लोढ़ा, श्री चंद्रोदयसिंह राज, श्री राजमल डांगी, श्री विक्रम विद्यार्थी, श्री ब्रजेश जोशी समेत नीमच रतलाम उज्जैन इंदौर भोपाल जबलपुर आदि स्थानों के कवियों, साहित्यकारों, पत्रकार संपादकों आदि के साथ लेखक भी सहभागी रहे थे।

इस बारे में हिंदी साहित्य सम्मेलन अध्यक्ष श्री मायाराम सुरजन ने व्यथित मन से लिखा है कि श्री गुरु हमारे मित्र साथी और सुख दुःख के सहभागी रहे उनका सम्मान नहीं हो सका और 19 अक्टूबर को वे महाप्रयाण कर हमेशा के लिए विदा होगये। यह टिस अधिवेशन में शामिल सभी साहित्यकारों, कवियों और पत्रकारों के मन में बनी रही।

श्री रामेश्वर गुरु गुणों की खान थे। साहित्य, पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में श्रेष्ठ और ज्येष्ठ होने के बाद भी विनम्रता, सहजता और सेवा भाव की अनोखी मिसाल थे इसी के चलते उन्हें गुरूजी नाम से संबोधित किया जाने लगा। इस गरिमा को आपने जीवन पर्यन्त निभाया।
आज 37 साल बाद भी श्री रामेश्वर गुरूजी को जबलपुर, महाकौशल ही नहीं प्रदेश और देश भर में हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता के लिए आदर और सम्मान से याद किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र में भी आपने सेवा दी और जबलपुर के महापौर भी रहे। अपने कार्यकाल में सत्याग्रही महिला सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रतिमा स्थापित कराई। श्री पदुमलाल पुन्नालाल बक्षी का अभिनदंन समारोह आयोजित कर जनसहयोग से श्रद्धानिधि भेंट की, तत्कालीन समय की यह बड़ी घटना है।
उनके जन्मशताब्दी वर्ष को समारोहपूर्वक मनाया गया, माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल द्वारा प्रकाशित “आंचलिक पत्रकार” पत्रिका ने स्व. श्री रामेश्वर गुरूजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित अप्रैल 2012 में विशेषांक प्रकाशित किया।

पत्रकारिता, साहित्य और शिक्षा के कीर्तिपुरुष स्व. श्री रामेश्वर गुरूजी के व्यक्तित्व और कृतित्व के स्थायी योगदान के लिए स्मृति स्वरूप माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय प्रतिभावान पत्रकारिता पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।

अग्रज पीढ़ी के सशक्त प्रतिनिधि हस्ताक्षर ओर क़लम के धनी स्व . श्री रामेश्वर गुरूजी की स्मृति को नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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