प्रसंगवश: सीतामऊ साहित्योत्सव – विद्या वाचस्पति महाराज कुमार डॉ. रघुवीरसिंह
● डॉ. रवीन्द्रकुमार सोहोनी, मन्दसौर
मध्यभारत के राजपूत राज्यों में सीतामऊ राज्य का स्थान महत्वपूर्ण है। जोधपुर के राठौर राज्यवंश से निकले केशवदास ने 30 अक्टूबर 1701 में तीतरोद परगना जागीर में इसकी आधारशिला रखी, जो सीतामऊ राज्य क्षेत्र में स्थित होकर वर्तमान में सीतामऊ तहसील में है।
सीतामऊ राज्य में दो महाराजकुमार हुए है प्रथम महाराजकुमार रतनसिंह ‘नटनागर’ और द्वितीय महाराज कुमार डॉ. रघुवीरसिंह दोनों ही के द्वारा शिक्षा, साहित्य, इतिहास के क्षेत्र में नए क्षितिजों को उद्घाटित करने में अभूतपूर्व भूमिका का निर्वहन किया गया जो मालवा के मध्यकालीन इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इन दोनों महाराजकुमार के अतिरिक्त डॉ. रघुवीरसिंह के पिता महाराज रामसिंह के द्वारा शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में अनुठी भूमिका निभाई, जिसके फलस्वरूप इस दौर में सीतामऊ को छोटी काशी होने का सम्मान भी प्राप्त हुआ।
23 फरवरी, 1908 को महाराज रामसिंह के यहाँ ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्में महाराजकुमार रघुवीरसिंह की प्रारंभिक शिक्षा सीतामऊ और डेली कॉलेज इंदौर (कुछ समय) में हुई, उसके पश्चात् 1924 में बड़ौदा हाईस्कूल से हाईस्कूल तथा 1926 में इन्टरमीडिएट की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की, वर्ष 1928 में आपने टीचरफैलो के रूप में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, वर्ष 1930 में रघुवीरसिंह जी ने होल्कर महाविद्यालय, इंदौर से विधि स्नातक के रूप में एल-एल.बी. की उपाधि को प्राप्त किया।
आपने आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष 1933 में परास्नातक (एम.ए.) किया। भारतीय इतिहास के कीर्तिकलश स्वनामधन्य सर जदुनाथ सरकार के कुशल निर्देशन में आपने अपना शोध प्रबंध (थीसिस) ‘‘मालवा इनट्राजिशन’’ शीर्षक से प्रस्तुत कर डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की, आगरा से डी.लिट् की उपाधि प्राप्त करने वाले महाराजकुमार रघुवीरसिंह पहले विद्यार्थी थे।
अपनी सात्विक संत प्रवृत्ति के कारण राज्य के कार्यों में आपकी रूचि नहीं थी। शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व में अनिर्वचनीय रूचि के फलस्वरूप आपने अपने पिता महाराजा रामसिंह के स्वर्गवासोपरान्त अपना राजकीय उत्तराधिकार अपने ज्येष्ठ पुत्र, कृष्णसिंह राठौर (आई.पी.एस.) को ही सीधे दिलवा दिया। द्वितीय महायुद्ध के दौरान 1939 में सेना में भर्ती होकर रावलपिण्डी, पेशावर, क्वेटा जैसे स्थानों पर पहले कैप्टन तथा कालान्तर में पदोन्नत होकर मेजर के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। वर्ष 1945 में सेना से त्यागपत्र देकर वापस आ गए।
एक अद्वितीय इतिहासवेत्ता होने के कारण डॉ. रघुवीरसिंह भारतवर्ष के पुरातात्विक महत्व के स्थलों, मूर्तियों एवं अन्य कलाकृतियों के प्रति न केवल सचेष्ठ रहे अपितु उनका विधिवत डाक्यूमेन्टेशन का दुरूह और असाध्य कार्य भी संपादित किया।
फोटोग्राफी और पेटिंग में दक्ष रहे डॉ. रघुवीरसिंह ने भारतवर्ष की लब्धप्रतिष्ठित संस्था जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई से आर्ट डिप्लोमा भी प्राप्त किया। वर्ष 1926 से 1928 के मध्य उनके द्वारा बनाई गई कई पेन्टिंग आज भी ‘नटनागर’ शोध संस्थान के ग्रंथालय में देखी जा सकती है। महाराजकुमार द्वारा बनाई गई लदूना राजप्रसाद की पेन्टिंग कला की थोड़ी सी समझ रखने वाले व्यक्ति को भी मन्त्रमुग्ध कर देती है।
वर्ष 1947 में इलाहबाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आपके शोधग्रंथ ‘‘मालवा में युगान्तर’’ को ‘‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’’ सम्मान से सम्मानित किया गया। उनकी एक अन्य कृति ‘‘पूर्व आधुनिक राजस्थान’’ उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा विशेष पुरस्कार से पुरस्कृत हो चुकी है।
डॉ. रघुवीरसिंह ने वर्ष 1936 के आस-पास ‘रघुवीर लायब्रेरी’ की स्थापना की थी, तभी से इस ग्रंथालय के विकास और उन्नयन के लिये आप आजीवन कटिबद्ध रहे। इस ग्रंथालय में फारसी, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, मराठी तथा अन्यान्य भाषाओं के हस्तलिखित ग्रंथ (पाण्डुलिपियां), माइक्रो फिल्में, फोटोप्रिन्ट्स संग्रहित हैं।
अगस्त, 1974 में आपने पूर्व महाराजकुमार रतनसिंह ‘नटनागर’ के नाम पर ‘नटनागर शोध संस्थान’ की स्थापना कर रघुवीर गं्रथालय को भी इसी में समायोजित कर ‘मध्यकालीन इतिहास’ के सबसे विख्यात और खूबसूरत शोध केन्द्र के रूप में तब्दील कर दिया।
भारत के मध्यकालीन इतिहास पर कार्य करने वाला कोई भी बड़ा इतिहासकार ऐसा नहीं होगा जिससे सीतामऊ के ‘नटनागर शोध संस्थान’ की परिक्रमा न की हो।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहबाद (दिसम्बर, 1975) में महाराजकुमार डॉ. रघुवीरसिंह को ‘हिन्दी वाचस्पति’’ की मानद उपाधि से सम्मानि किया गया। अप्रैल 1976 ग्वालियर में आयोजित म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के आप अध्यक्ष रहे। आजीवन अहर्निश हिन्दी साहित्य की सेवाओं के लिये उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ ने डॉ. रघुवीरसिंह को विशेष तौर पर सम्मानित कर पुरस्कार स्वरूप पन्द्रह हजार रूपये की राशि भी उन्हें भेंट की।
राज्यसभा सदस्य, मूर्धन्य साहित्यकार, लब्ध प्रतिष्ठित इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता, कला, शिक्षा, संस्कृति और साहित्य मनीषी डॉ. रघुवीरसिंह की जन्मस्थली और कर्मस्थली में 30 जनवरी से 1 फरवरी 2024 तक सम्पन्न होने जा रहे सीतामऊ साहित्य महोत्सव में पधार रहे सभी स्वनामधन्य साहित्यकारों, इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, कलाकर्मियों, पर्यावरणविदों, सुधिजनों, सुधिपाठकों के साथ ही कला, साहित्य, इतिहास, पर्यावरण और संस्कृति के प्रति प्रेम रखने वाले जनमानस का छोटी काशी (सीतामऊ) की धरा पर स्नेहिल स्वागत, वंदन और अभिनंदन।
इति शुभम।