Tokyo Olympics: भवानी की तलवार मेडल तो ना ला सकी, पर लड़कियों की आंखों में नए ख्वाब जरूर सजा दिए हैं
भवानी देवी को महिलाओं की व्यक्तिगत साबरे के दूसरे मैच में रियो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाने वाली ब्रूनेट से 7-15 से हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने इससे पहले ट्यूनीशिया की नादिया बेन अजीजी को 15-3 से हराकर दूसरे दौर में प्रवेश किया था. भवानी देवी पहले पीरियड में 2-8 से पीछे हो गई थीं. ब्रूनेट ने दूसरे पीरियड की भी अच्छी शुरुआत की और स्कोर 11-2 कर दिया. भवानी ने इसके बाद लगातार चार अंक बनाए, लेकिन वह नौ मिनट 48 सेकेंड तक चले मुकाबले में ब्रूनेट को पहले 15 अंक तक पहुंचने से नहीं रोक पाईं. इस स्पर्धा में जो भी तलवारबाज पहले 15 अंक हासिल करता है, उसे विजेता घोषित किया जाता है.
भवानी देवी ने कहा, ‘यह मेरा पहला ओलंपिक है और ओलंपिक में भाग लेने वाली मैं देश की पहली तलवारबाज हूं. मैं यहां भारत का प्रतिनिधित्व करके और पहला मैच जीतकर खुश हूं.’ इससे पहले भवानी ने अजीजी के खिलाफ शुरू से ही आक्रामक रवैया अपनाया. उन्होंने अजीजी के खुले ‘स्टांस’ का फायदा उठाया। इससे उन्हें अंक बनाने में मदद मिली. 27 साल भवानी ने तीन मिनट के पहले पीरियड में एक भी अंक नहीं गंवाया और 8-0 की मजबूत बढ़त बना ली थी.
तलवारबाजी में कोई खिलाड़ी नहीं था, इसलिए भवानी से इसे चुना
भवानी देवी ने स्कूल में तलवारबाजी को विकल्पहीनता के कारण चुना था. स्कूल में छह खेल थे, जिनमें से एक को चुनना था. जब तक भवानी अपना विकल्प चुनतीं, तब तक पांच खेलों की सीटें फुल हो गई थीं. इस कारण भवानी के सामने छठा खेल खेलने का ही विकल्प बचा, जो तलवारबाजी था. 2004 से हुई शुरुआत के बाद इस खेल से भवानी का लगाव धीरे-धीरे बढ़ता रहा. साई (SAI) के कोच सागर लागू ने उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें केरल के थालासेरी में सेंटर में ट्रेनिंग के लिए बुलाया और कुछ समय बाद उन्होंने नेशनल में मेडल जीतना शुरू कर दिया. भवानी ने पहला इंटरनेशनल मेडल 2009 कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहकर हासिल किया. उन्होंने 2014 एशियाई चैम्पियनशिप में व्यक्तिगत स्पर्धा का सिल्वर पदक जीता.
खेल के लिए झूठ भी बोलना पड़ा
भवानी देवी ने बताया कि इस खेल से जुड़ने के लिए उन्होंने स्कूल में झूठ भी बोला था. उन्होंने कहा कि मुझसे मेरे पिता की सालाना आय पूछी थी और कहा कि तलवारबाजी बहुत मंहगा खेल है. अगर तुम गरीब परिवार से हो तो तुम इसका खर्चा नहीं उठा पाओगी. लेकिन मैंने झूठ बोला और अपने पिता की आय ज्यादा बता दी. उन्होंने कहा कि शुरू में जब तलवार काफी महंगी होती तो हम बांस की लकड़ियों से खेला करते थे और अपनी तलवार केवल टूर्नामेंट के लिए ही इस्तेमाल करते थे, क्योंकि अगर ये टूट जातीं तो हम फिर से इनका खर्चा नहीं उठा सकते थे और भारत में इन्हें खरीदना आसान नहीं है.
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2012 में साइना की जीत ने बैडमिंटन को पॉपुलर बनाया
भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने 2012 लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. यह हमारा ओलंपिक में बैडमिंटन का पहला मेडल था. इस जीत ने देश में बैडमिंटन को पॉपुलर बना दिया. इसके बाद पीवी सिंधु ने 2016 रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल पर कब्जा किया. वे वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने में भी सफल रहीं. हर खेल को फेमस होने के कारण एक रोल मॉडल की जरूरत होती है और भवानी देवी ने ओलंपिक में उतरकर तलवारबाजी को पॉपुलर तो बना ही दिया है.
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