Tokyo Olympics : रवि दहिया के ओलंपिक पदक का बेसब्री से इंतजार कर रहा है हरियाणा का नाहरी गांव
किसान के पुत्र तथा शांत और शर्मीले मिजाज के रवि इस गांव के तीसरे ओलंपियन हैं. ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके महावीर सिंह (मॉस्को ओलंपिक-1980 और लॉस एंजिल्स ओलंपिक-1984) तथा अमित दहिया (लंदन ओलंपिक-2012) भी इसी गांव के रहने वाले हैं. गांव वाले ऐसा क्यों सोचते हैं कि 24 वर्षीय रवि के पदक जीतने से नाहरी का भाग्य बदल जाएगा, इसके पीछे भी एक कहानी है.
महावीर सिंह के ओलंपिक में दो बार देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने उनसे उनकी इच्छा के बारे में पूछा तो उन्होंने गांव में पशु चिकित्सालय खोलने का आग्रह किया. मुख्यमंत्री ने इस पर अमल किया और पशु चिकित्सालय बन गया. अब गांव वालों का मानना है कि यदि रवि टोक्यो में अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो नाहरी भी सुर्खियों में आ जाएगा तथा सरकार उस गांव में कुछ विकास परियोजनाएं शुरू कर सकती है जहां 4000 परिवार रहते हैं.
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नाहरी के सरपंच सुनील कुमार दहिया ने कहा, ‘इस गांव ने देश को तीन ओलंपियन दिए हैं. इस मिट्टी में कुछ खास है. हमें पूरा विश्वास है कि रवि पदक जीतेंगे और उनकी सफलता से गांव का विकास भी शुरू हो जाएगा. यहां कोई अच्छा अस्पताल नहीं है. हमें सोनीपत या नरेला जाना पड़ता है. यहां कोई स्टेडियम नहीं है. हमने छोटा स्टेडियम बनाया है लेकिन उसमें मैट, अकादमी या कोच नहीं है. यदि सुविधाएं हों तो गांव के बच्चे बेहतर जीवन जी सकते हैं.’
गांव वालों की विकास से जुड़ी उम्मीदें रवि पर टिकी हैं लेकिन इस पहलवान को अपने पिता राकेश कुमार दहिया के बलिदान और नैतिक समर्थन के कारण सफलता मिली. राकेश वर्षों से पट्टे पर लिए खेतों पर मेहनत कर रहे हैं लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष को कभी रवि के अभ्यास में रोड़ा नहीं बनने दिया. राकेश हर रोज नाहरी से 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम में अभ्यास कर रहे अपने बेटे के लिए दूध और मक्खन लेकर आते थे ताकि उनके बेटे को सर्वोत्तम आहार मिले. वह सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर जागते. अपने करीबी रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के लिए पांच किलोमीटर चलते. फिर आजादपुर में उतरते और वहां से दो किलोमीटर पैदल चलकर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचते.
वापस लौटने के बाद राकेश खेतों में काम करते. कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन से पहले लगातार 12 वर्षों तक उनकी यह दिनचर्या रही. राकेश ने सुनिश्चित किया कि उनका बेटा उनके बलिदानों का सम्मान करना सीखे. उन्होंने कहा, ‘उसकी मां उसके लिए मक्खन बनाया और मैं उसे कटोरे में ले गया था. रवि ने पानी हटाने के लिए सारा मक्खन मैदान पर गिरा दिया. मैंने उससे कहा कि हम बेहद मुश्किलों में उसके लिए अच्छा आहार जुटा पाते हैं और उसे लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. मैंने उससे कहा कि वह उसे बेकार ना जाने दे उसे मैदान से उठाकर मक्खन खाना होगा.’
रवि तब छह साल का था जब उनके पिता ने उन्हें कुश्ती से जोड़ा था. राकेश ने कहा, ‘उसका शुरू से एकमात्र सपना ओलंपिक पदक जीतना है. वह इसके अलावा कुछ नहीं जानता.’ यह तो वक्त ही बताएगा कि क्या रवि ओलंपिक में पदक जीतकर लौटेगा लेकिन नाहरी दिल थामकर उनका इंतजार कर रहा है.
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