अशरफ गनी और जेलेंस्की में क्या फर्क है? जानिए EU में उनके लिए बजी तालियों के मायने


नई दिल्ली: अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच क्या फर्क है. अशरफ गनी अमेरिका के कहने पर अपना देश छोड़ कर भाग गए थे और यूक्रेन के राष्ट्रपति आज भी युद्ध के बीचों बीच रह कर अपने देश की रक्षा कर रहे हैं.

दो नेताओं के बीच का फर्क

सबसे बड़ा अंतर ये है कि अशरफ गनी एक कायर राष्ट्रपति की तरह संकट की घड़ी में अपने देश और अपने नागरिकों को मरने के लिए छोड़ कर अफगानिस्तान से भाग गए थे. जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की, युद्ध में भी राजधानी कीव में डटे हुए हैं और उन्होंने अपने नागरिकों से कहा है कि वो आखिर सांस तक अपने देश और अपने लोगों की आजादी के लिए संघर्ष करेंगे.

ज्यादा अनुभवी नेता के छोटे काम

दोनों नेताओं में ये अंतर तब है, जब अशरफ गनी के पास लम्बा राजनीतिक अनुभव था. वो लगभग 15 वर्षों से अफगानिस्तान की सक्रिय राजनीति का हिस्सा थे और लगभग पांच वर्षों तक उन्होंने अफगानिस्तान में अमेरिका जैसे देश के सहयोग से सरकार चलाई थी. यानी उनके पास अमेरिका जैसे देशों के साथ डील करने का भी अनुभव था. वो कूटनीति को भी समझते थे और वैश्विक राजनीति की भी जानकारी रखते थे. लेकिन इसके बावजूद अशरफ गनी के राष्ट्रपति रहते हुए तालिबान ने आसानी से काबुल को रातों रात अपने कब्जे में ले लिया और वो इस संकट का सामना करने के बजाय भारी मात्रा में कैश लेकर दूसरे देश भाग गए.

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यूक्रेन के पोस्टर बॉय हैं जेलेंस्की

जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को दुनिया ने कभी नेता माना ही नहीं. उन्हें हमेशा से एक Actor और Comedian की तरह देखा गया और उनके लिए ये धारणा बन गई कि वो राजनीति तो कर ही नहीं सकते. लेकिन आज जेलेंस्की ने अपने साहस और अपनी कार्यशैली से पूरी दुनिया को चौंका दिया है. जेलेंस्की के पास यूरोपीय देशों से ये प्रस्ताव था कि वो उनके यहां आकर शरण ले सकते हैं, लेकिन उन्होंने यूक्रेन में रह कर रशिया के खिलाफ संघर्ष करने का फैसला किया और आज वो पूरी दुनिया में यूक्रेन के Posterboy बन चुके हैं.

जेलेंस्की- एक सफल लीडर

माना जाता है कि जिस देश का नेतृत्व किसी अनुभवी नेता के पास होता है, उस देश की सरकार और सेना के बीच अच्छा संतुलन होता है. लेकिन अशरफ गनी इसमें भी नाकाम रहे थे. जब तालिबान ने काबुल पर कब्जे की लड़ाई शुरू की, उस दौरान सिर्फ अशरफ गनी ही अपना देश छोड़ कर नहीं भागे, बल्कि अफगानिस्तान की सेना के कई बड़े कमांडर्स और सैन्य अधिकारियों ने भी दूसरे देशों में जाकर शरण ले ली थी. जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति को राजनीति में आए सिर्फ चार वर्ष ही हुए हैं. लेकिन आज वो सरकार और सेना के बीच जबरदस्त संतुलन बैठाने में कामयाब रहे हैं और जेलेंस्की की एक बहुत बड़ी जीत ये है कि विपरीत परिस्थितियों में भी उनकी सेना उनके सभी आदेशों का पालन कर रही है और यूक्रेन के नागरिकों का भी उन्हें भरपूर समर्थन मिल रहा है. जबकि इस तरह के उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं.

कठिन समय में भी एकजुट सरकार

अक्सर होता ये है कि जब किसी देश का नेता कमजोर होता है तो वहां की सेना उस देश पर हावी हो जाती है. लेकिन यूक्रेन में ऐसा कुछ नहीं हुआ और जेलेंस्की अद्भुत तरीके से अपने देश और अपने सैनिकों का नेतृत्व कर रहे हैं. इसके अलावा यूक्रेन की पूरी सरकार उनके साथ एकजुट है.

अब EU का सदस्य देश हुआ यूक्रेन

आज जेलेंस्की ने European Union के विशेष सत्र को संबोधित किया और इस दौरान उनके लिए 1 मिनट 12 सेकेंड तक तालियां बजती रहीं. यूक्रेन के राष्ट्रपति ने सोमवार को ही EU का सदस्य देश बनने के लिए आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर किए थे और मंगलवार को EU ने इस आवेदन को चर्चा के लिए स्वीकार कर लिया. अपने वर्चुअल भाषण के दौरान जेलेंस्की ने EU से भरोसा मांगा कि वो यूक्रेन को संकट की इस घड़ी में अकेला नहीं छोड़ेंगे.

आपदा में अवसर ढूंढता EU

यूरोपीय यूनियन ने आज तक उन्हीं देशों पर दांव लगाया है, जिनसे उसके हित पूरे होते हैं और यूक्रेन को EU का सदस्य देश बना कर उसे ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा. बल्कि इससे EU का रशिया के साथ टकराव बढ़ेगा और EU कभी भी किसी दूसरे देश के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगा. वो केवल यूक्रेन के आवेदन पत्र पर चर्चा करके हीरो बनना चाहता है और ये दिखाना चाहता है कि जब रशिया यूक्रेन पर हमला कर रहा है, तब वो यूक्रेन के साथ है. जबकि सच ये है कि EU ने लेक्चर देने के अलावा और रशिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के अलावा यूक्रेन के लिए कुछ नहीं किया है.

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