maharashtra phone tapping case: nana patole has made complaint against this: महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रमुख नाना पटोले ने की थी शिकायत


मुंबई: सीआरपीएफ की अडिशनल डीजी रश्मि शुक्ला(Rashmi Shukla) के खिलाफ 25 फरवरी को पुणे पुलिस(Pune Police) में अवैध रूप से फोन टैप करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई है। कांग्रेस नेता नाना पटोले(Nana Patole) ने कुछ महीने पहले यह आरोप लगाए थे कि उनके व कुछ नेताओं के फोन साल 2016-18 के दौरान टैप किए गए। रश्मि शुक्ला उन दिनों पुणे की पुलिस कमिश्नर थीं। इसलिए उनके खिलाफ पुणे में एफआईआर दर्ज हुई। वह बाद में महाराष्ट्र एसआईडी की चीफ भी बनीं। उस दौरान भी उन पर अवैध फोन टैपिंग करने के आरोप लगे। पिछले साल मुंबई पुलिस की साइबर सेल ने इस संबंध में उनसे लंबी पूछताछ भी की थी। सवाल यह है कि किसी के फोन पुलिस द्वारा अधिकृत रूप से कैसे टैप होते हैं और अवैध रूप से उसे किस तरह टैप किया जाता है? एनबीटी ने इस संबंध में कुछ पुलिस अधिकारियों से बातचीत कर इस पूरी प्रक्रिया को समझने की कोशिश की।

फोन टैपिंग की प्रक्रिया
एक अधिकारी ने बताया कि यदि किसी सब-इंस्पेक्टर या इंस्पेक्टर को किसी के बारे में खबर मिली कि वह कोई बड़ा अपराध या साजिश करने जा रहा है, तो वह अधिकारी अपने इमीडिएट बॉस को सूचना देगा। यदि सब इंस्पेक्टर या इंस्पेक्टर मुंबई क्राइम ब्रांच से जुड़ा है, तो तत्काल सूचना क्राइम ब्रांच के डीसीपी को दी जाएगी। डीसीपी मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ की मौखिक परमिशन लेकर खुद अपने सिग्नेचर से या मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ के सिग्नेचर लेकर संबंधित मोबाइल कंपनी के नोडल अधिकारी को लेटर लिखेगा कि फलां, फलां नंबर को क्राइम ब्रांच के फलां फलां नंबर पर डायवर्ट कर दिया जाए। नोडल अधिकारी अपने टेक्निशियन की मदद से वह नंबर क्राइम ब्रांच द्वारा बताए नंबर पर डायवर्ट कर देगा। इसके बाद जब शक के घेरे में आए नंबर से कोई कॉल की जाएगी या उस पर कोई कॉल आएगी, तो पहले वह कॉल डायवर्ट होकर मुंबई क्राइम ब्रांच के नंबर पर जाएगी। फिर जिसे कॉल किया गया है, उस तक पहुंचेगी। दोनों प्रक्रियाओं के बीच एक सेकेंड से भी कम का अंतर होता है, इसलिए सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि उसका फोन टैप हो रहा है।

अडिशनल चीफ सेक्रेटरी की परमिशन जरूरी
अधिकारी के अनुसार, टेलिग्राम ऐक्ट में ऐसा लिखा है कि इसके बाद डीसीपी या जॉइंट सीपी को सात दिन के अंदर अडिशनल चीफ सेक्रेटरी होम (एसीएस) से परमिशन लेनी जरूरी होती है। एसीएस को यदि कोई शक नहीं होता, तो वह कंटिन्यू लिखकर लिखकर संबंधित मोबाइल कंपनी के नोडल अधिकारी को लेटर फॉरवर्ड कर देता है। यदि एसीएस को कुछ गड़बड़ या शक होता है, तो वह लेटर पर रिजेक्टेड लिख देता है और इसके बाद संबंधित मोबाइल कंपनी वह नंबर क्राइम ब्रांच या किसी भी दूसरी एजेंसी को डायवर्ट करने की प्रक्रिया को वहीं रोक देती है।

यहां पर दो बातें समझनी जरूरी हैं। पहली यह कि मोबाइल कंपनी कभी फोन टैप नहीं करती। वह सिर्फ नंबर डायवर्ट करती है, जिस नंबर पर जांच एजेंसी को शक के घेरे में आए व्यक्ति के नंबर को टैप करना होता है। दूसरी बात यह कि मोबाइल कंपनी के नोडल अधिकारी को दो लेटर मिलने जरूरी हैं। पहला लेटर जांच एजेंसी की तरफ से होना चाहिए और दूसरा लेटर अडिशनल चीफ सेक्रेटरी होम यानी एसीएस की तरफ से।

क्या होता है एक्स प्रॉजेक्ट?
पुलिस में टैपिंग की इस प्रक्रिया को एक्स प्रॉजेक्ट बोला जाता है। यदि मुंबई क्राइम ब्रांच के किसी सब इंस्पेक्टर या इंस्पेक्टर की टिप पर फोन टैप किए जाते हैं, तो वह मुंबई पुलिस मुख्यालय में बने एक्स प्रॉजेक्ट ऑफिस में होंगे। यदि पुलिस स्टेशन के किसी अधिकारी को किसी इन्वेस्टिगेशन के लिए किसी नंबर को टैप करना होगा, तो ऐसे नंबर जॉइंट सीपी लॉ एंड ऑर्डर या सीपी की परमिशन से एसबी वन के ऑफिस में टैप होते हैं। यदि टेरर से जुड़ा कोई केस है या कोई बहुत हाई-प्रोफाइल केस, तो महाराष्ट्र एटीएस के ऑफिस में इसकी टैपिंग की जाती है और इसके लिए एटीएस चीफ की परमिशन जरूरी होती। यदि रिश्वत मांगने से जुड़े केस में कोई ट्रैप लगाना हो, ऐंटि करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के अडिशनल डीजी की परमिशन लेकर शक के घेरे में आए व्यक्ति के मोबाइल नंबर टैप किए जाते हैं। यदि किसी मामले में राज्य पुलिस के पास कोई बड़ी सूचना है, तो स्टेट इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट (एसआईडी) का चीफ मोबाइल फोन टैप करने की परमिशन देता है।

पाकिस्तान के आतंकवादियों के नंबर भी हुए थे टैप
कई बार किसी के फोन टैप करने की प्रक्रिया आराम से चलती है, लेकिन 26/11 जैसे हमले के दौरान फैसले तत्काल लेने होते हैं। एक अधिकारी ने हमें बताया कि 26/11 को देर रात महाराष्ट्र एटीएस के एक इंस्पेक्टर कदम को खबर मिली कि आतंकवादी फलां फलां मोबाइल नंबर यूज कर रहे हैं और उस पर बात कर रहे हैं। तब तक एटीएस चीफ हेमंत करकरे शहीद हो गए थे। एटीएस के उस इंस्पेक्टर ने उसके बाद एक कागज पर छोटी सी नोटिंग की, एक लेटर बनाया और फिर लेटर लेकर ट्राइडेंट होटल के पास परमबीर सिंह के पास गया, जिनके पास तब एटीएस का अस्थाई चार्ज आ गया था। परमबीर सिंह ने उस लेटर पर सिग्नेचर किए। फौरन संबंधित मोबाइल कंपनी को आतंकवादियों के नंबर एटीएस के नंबर पर डायवर्ट करने को कहा गया, ताकि आतंकवादियों की आपस में हो रही बातचीत को सुना जा सके।

ड्रग माफिया के नाम से नाना पटोले का फोन टैप हुआ
एक पुलिस अधिकारी ने अवैध फोन टेप प्रक्रिया के बारे में भी हमें बताया। कहा, यदि किसी सही आदमी का फोन राजनीतिक कारणों या किसी अन्य वजह से अवैध रूप से टैप किया जाता है, तो संबंधित इंस्पेक्टर या टॉप रैंक अधिकारी कोई फर्जी नाम बताकर, किसी अपराधी का नंबर बताकर या उस अपराधी से कनेक्शन को जोड़कर मोबाइल कंपनी के नोडल अधिकारी को वह नंबर संबंधित जांच एजेंसी के नंबर पर डायवर्ट करने के लिए भेज देता है। उसके बाद उसके नंबर की संबंधित एजेंसी टैपिंग शुरू कर देती है। जैसे कांग्रेस नेता नाना पटोले का आरोप है कि उनका फोन नंबर ड्रग माफिया अमजद खान का नंबर बताकर टैप किया जा रहा था।

पहले सीआईयू भी करती थी फोन टैप
पिछले साल मुंबई पुलिस सचिन वझे की वजह से बहुत बदनाम हुई थी। सचिन वझे जून, 2020 से मार्च, 2021 तक सीआईयू के चीफ थे। अभी तो मुंबई पुलिस में सीआईयू सिर्फ एक ही है, किसी जमाने में अंधेरी व कुछ अन्य जगहों पर भी सीआईयू की ब्रांच हुआ करती थीं। अंधेरी सीआईयू में करीब 20 साल पहले सचिन वझे काम करते थे। उस वक्त सीआईयू को भी फोन टैप करने का सीधा एक्सेस मिला हुआ था। हालांकि कुछ शिकायतों के बाद सीआईयू के फोन टैप करने के अधिकार को छीन लिया गया। एक अधिकारी के अनुसार, उस प्रक्रिया के नुकसान के साथ कुछ फायदे भी थे। जैसे तब जांच अधिकारी मोबाइल कंपनी के नोडल अधिकारी से अपने नंबर पर किसी सस्पेक्ट की कॉल को सीधे डायवर्ट करवा लेता था और फिर सीधे बातचीत सुनता था। अभी टैपिंग ऑटोमैटिक एक्स प्रॉजेक्ट के ऑफिस में होती है। वहां 200 से 300 के आसपास नंबर होते हैं। इसमें वहां से यानी एक्स प्रॉजेक्ट ऑफिस से सूचना संबंधित जांच टीम या जांच अधिकारी को डायवर्ट की जाती है। इसमें कई बार कुछ देर भी हो जाती है, लेकिन सेंसिटिव केसों में एक्स प्रॉजेक्ट से जुड़ी टीम खुद लगातार फोन सुनती रहती है और पल-पल की जानकारी अपने बॉस या बॉस के निर्देश पर जांच टीम को शेयर करती है।

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